एक हिंदी ग़ज़ल : चांदनी
(शरद पूर्णिमा पर विशेष)
क्या शरारत वहां कर रही चांदनी-?
रात भर खिडकियों पर रही चांदनी।
मैं तुम्हारे लिये गीत गाने लगा-
इसलिये आजकल डर रही चांदनी।
सब तुझे खोजते ही रहे उम्र भर-
तू छुपी सबके भीतर रही चांदनी।
फूल से सीख ली हैं सभी हरकतें-
हंस रही, खिल रही, झर रही चांदनी।
आइना देखने की ज़रूरत नहीं-
आपके हुस्न पे मर रही चांदनी।
"कृष्ण" की बांसुरी की मधुर गूंज पर
रात भर घर से बाहर रही चांदनी।
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