एक और ग़ज़ल भेज रहा हूँ। इस पर तारीख पड़ी है- 22-09-1991. आप सबकी प्रतिक्रया का इंतज़ार रहेगा.....
जैसे बर-बह्र शाइरी देखी।
हमने ऐसी भी बेबसी देखी।
है सितारा बुलंद किस्मत का-
नींद- तेरा बड़ा है शुकराना
यूँ हुआ इल्म मुक़म्मल अपना-
आज का दिन "मंच" पर वज्रपात का दिन है। आज की सुबह ह्रदय द्रावक समाचार लाई है. एक सड़क दुर्घटना में मंच के लोकप्रिय कवि ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड सिंह गुज्जर का निधन हो गया और ओम व्यास तथा ज्ञानी बैरागी गंभीर रूप से घायल हुए हैं.
एक शोक सूचना और- वरिष्ठ रंग-कर्मी हबीब तनवीर का भोपाल में ८६ वर्ष की उम्र में निधन हो गया. रंगमंच की एक महत्वपूर्ण कठपुतली को जगत-नियंता ने वापस बुला लिया.हबीब तनवीर जी, आदित्य जी, नीरज पुरी जी, और लाड सिंह गुज्जर जी को श्रद्धांजलि और ओम व्यास तथा बैरागी जी शीघ्र स्वस्थ हों यही कामना.
आज कुछ पुराने कागजात खंगालते वक्त एक पुरानी रचना मिली जिस पर तारीख पड़ी थी- १५ जनवरी १९९२। इसे पढ़ते हुए कुछ पुरानी स्मृतियाँ भी उछल-कूद कर गईं। इसे केवल मेरी प्रारम्भिक रचनाओं के रूप में देखें.
गीत गाते रहे गुनगुनाते रहे।
रात भर महफिलों को सजाते रहे।
सबने देखी हमारी हंसी और हम-
आंसुओं से स्वयं को छुपाते रहे।
सुर्ख फूलों के आँचल ये लिख जायेंगे-
हम बनाते रहे वो मिटाते रहे।
रेत पर नक्शे-पा छोड़ने की सज़ा
उम्र भर फासलों में ही पाते रहे।
सबने यारों पे भी शक किया है मगर-
हम रकीबों को कासिद बनाते रहे।
हमको आती है यारो! ये सुनकर हंसी-
"वो हमारे लिए दिल जलाते रहे। "
नीली आंखों के खंजर चुभे जब उन्हें-
दर्द में "कृष्ण" के गीत गाते रहे।