शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

गीत की आपबीती-1

"पग घुँघरू बांध मीरा नाची थी" राग दरबारी कान्हड़ा में एक एबसर्ड गीत 





आज शाम को जगजीत सिंह का गाया भजन "जय राधा माधव जय कुंज बिहारी" सुना और तभी से राग दरबारी कान्हड़ा में कुछ सुनने की इच्छा हो रही है । अब सुबह के तीन बज रहे हैं । ये समय (रात्रि का तीसरा प्रहर) राग दरबारी कान्हड़ा का ही है । ऐसा माना जाता है की इस राग की रचना संगीत सम्राट तानसेन ने की थी ।
दरबारी कान्हड़ा एक गम्भीर प्रकृति का राग है इसीलिए यदि इसकी रचना विलम्बित लय में हो तो वो बहुत अच्छी लगती है । इस राग में बहुत से लोकप्रिय गीत हैं । "तोरा मन दर्पण कहलाए" (फिल्म-काजल), "कोई मतवाला आया मेरे द्वारे" (लव इन टोक्यो), "रहा गर्दिशों में हरदम"(दो बदन), "उद जा भँवर माया कमल का" (रानी रूपमती), "शायराना सी है ज़िंदगी की फजा" (फिर तेरी कहानी याद आई), तेरी दुनिया में दिल लगता नहीं" (बावरे नैन), "तू प्यार का सागर है" (सीमा) .................... और हिन्दी फैली गीतों का सरताज गीत- "ओ दुनिया के रखवाले...." (बैजू बावरा)..........
पर चलिये... कुछ हट कर सुनते हैं ..... फिल्म "नमकहलाल" का गीत "पग घुँघरू बांध मीरा नाची...." । इस गीत को प्रकाश मेहरा ने लिखा, संगीत बप्पी लाहिड़ी का और स्वर किशोर कुमार व कोरस का था । इस अद्भुत गीत पर अद्भुत ही अभिनय चाहिए था जो उस समय (और आज भी) अमिताभ बच्चन के ही बूते की बात थी । यह गीत राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित है ।
इस गीत के लिए प्रकाश मेहरा फिल्मफेयर अवार्ड की गीतकार श्रेणी में नामित हुए और किशोरकुमार को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था ।
फिल्म में इस गीत की पृष्ठभूमि ये थी की ठेठ गाँव का नवयुवक (अमिताभ बच्चन) काम की तलाश में शहर में आता है जहां उसका दोस्त एक फाइव स्टार होटल में काम करता है । होटल में रात के समय एक इवैंट का कलाकार नहीं आता है तो होटल प्रबंधन ग्रामीण युवक को गाना गाने के लिए कहते हैं । वो अचकचाया-चौंधियाया युवक अपनी तात्कालिक घबराहट, बेरोजगारी, काम ढूँढने की लालसा, ग्रामीण परिवेश में मिले संगीत, मीरा के भजन और आदर्शवादी शिक्षाओं को अपने अनगढ़ गीत और अशास्त्रीय चेष्टाओं के साथ हाल में उपस्थित मद्यपान करते संभ्रांत लोगों के समक्ष लगभग पौने आठ मिनट तक प्रस्तुति देता है । वे संभ्रांत लोग भावहीन चेहरे के साथ सिर्फ ये देखते रहते हैं की कोई कुछ कर रहा है और कुछ कह रहा है ।
अब हम इस गीत की संरचना की थोड़ी बात करें । शास्त्रीय, लय-ताल, छंद में निबद्ध व्यवस्थित, अर्थपूर्ण गीत लिखना आसान काम हो सकता है, पर ऐसी एबसर्ड स्थिति के लिए गीत लिखना असंभव की सीमा तक मुश्किल होता है । इस असंभव से काम को प्रकाश मेहरा ने बखूबी अंजाम दिया है । बप्पी लाहिड़ी ने समय के अनुरूप इसे राग दरबारी कान्हड़ा में संगीतबद्ध किया । किशोरकुमार असाधारण प्रतिभाशाली, नैसर्गिक कलाकार थे । यह गीत व उसकी परिस्थिति उनकी निजी फितरत से मेल खाती थी और उन्होने इसके साथ पूरा न्याय किया ।
हिन्दी फिल्म संगीत के समृद्ध महाकोश में एबसर्ड गीत का यह अपने आप में अनूठा उदाहरण है । इस नायाब धरोहर के लिए प्रकाश मेहरा, बप्पी लाहिड़ी, किशोरकुमार और अमिताभ बच्चन को साधुवाद ।
आइये गीत सुनते भी हैं और कोशिश करते हैं की इसके शब्दों को भी साथ साथ पढ़ें (-गा भी सकते हैं)

बुज़ुर्गों ने,
बुज़ुर्गों ने, फ़रमाया के पैरों पे अपने खड़े होके दिखलाओ
फिर ये ज़माना तुम्हारा है,
ज़माने के सुर ताल के साथ, बढ़ते चले जाओ
फिर हर तराना तुम्हारा, फ़साना तुम्हारा है
अरे तो लो भैया हम, अपने पैरों के ऊपर,
खड़े हो गए,
और मिला ली है ताल
दबा लेगा दाँतों तले उँगलियाँ ... लियाँ ...
ये जहाँ देख कर, देख कर
अपनी चाल... वाह वाह!
धन्यवाद!
के पग घुँघरू ...
के पग घुँघरू बाँध, मीरा नाची थी
और हम नाचे बिन घुँगरू के
के पग घुँगरू बाँध, मीरा नाची थी
वो तीर भला, किस काम का है
जो तीर निशाने से चूके चूके चूके रे
के पग घुँघरू ...
स स स ग ग री री स नी नी स स स (३)
ग ग ग प प म म ग री री ग ग ग (२)
प नी स (४). म प नी (४)
रे रे रे रे रे ग रे ग रे ग
(Kishore stops)
प प प प प म ग रे स नी स ध
स नी स ध स नी स ध
स नी स ध स नी स ध
स ध नी स स ध नी स
स ध नी स स ध नी स
प म प म ग म ग रे
ग रे स नी स नी स ग
स रे स ग रे ग रे म
रे म ग म ग म प म
प म ग रे स नी स प स
प म ग रे स नी स प स
(Kishore continues)
Mmmmmmm...
आप अंदर से कुछ,
और बाहर से कुछ और नज़र आते हैं,
बरखुर्दार शक्ल से तो, चोर नज़र आते हैं,
उम्र गुज़री है सारी चोरी में
सारे सुख चैन बन्द, जुर्म की तिजौरी में
आप का तो लगता है बस यही सपना
राम नाम जपना पराया माल अपना (२)
वतन का खाया नमक तो, नमक हलाल बनो,
फ़र्ज़ ईमान की ज़िंदा यहाँ मिसाल बनो
पराया धन, पराई नार पे नज़र मत डालो
बुरी आदत है ये, आदत अभी बदल डालो
क्यों कि!! ये आदत तो, वो आग है जो
इक दिन अपना घर फूँके फूँके फूँके रे
के पग घुँघरू ...
(Some English lines here.........)
मौसम\-ए\-इश्क़ में मचले हुए अर्मान हैं हम
दिल को लगता है की दो जिस्म एक जान हैं हम
ऐसा लगता है तो लगने में कुछ बुराई नहीं
दिल ये कहता है आप अपनी हैं, पराई नहीं
संगेमरमर की हाय, कोई मूरत हो तुम
कोई दिलकश बड़ी, खूबसूरत हो तुम
दिल दिल से मिलने का कोई मुहूरत हो
प्यासे दिलों की ज़रूरत हो तुम
दिल चीरके, दिखला दूँ मैं,
दिल में यही, सूरत हंसीं
क्या आप को लगता नहीं, हम हैं मिले पहले कहीं
क्या देस है, क्या जात है,
क्या उम्र है, क्या नाम है,
अरे छोड़िये इन बातों से,
हमको भला क्या काम है
अजी सुनिये तो... हम आप मिले
तो फिर हो शुरू
अफ़साने लैला, मजनू लैला मजनू के
के पग घुँघरू ...

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© anandkrishna आनंदकृष्ण
यह लेख पहली बार फेसबुक पर 03 अगस्त 2017 को प्रकाशित किया गया ।
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