रविवार, 29 मार्च 2020

अनुवाद

विलियम कार्लोस विलियम्स की MARCH शृंखला की 
दो कविताओं का हिंदी में भावानुवाद

विलियम कार्लोस विलियम्स (जन्म 17 सितंबर 1883, मृत्यु 04 मार्च 1963) आधुनिक अमरीकी कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे । पेशे से वे शिशुरोग विशेषज्ञ थे किन्तु अमरीकन कविता पर उन्होने अपनी अमिट छाप छोड़ी ।
19 वीं सदी के अंतिम और बीसवीं सदी के प्रारम्भ में आधुनिकता और बिंबवाद की अवधारणा का साहित्य में अवतरण हुआ । विलियम्स इन दोनों अवधारणाओं से गहरे जुड़े थे ।
उन्हें अनेक पुरस्कार मिले जिनमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स, अमेरिका का स्वर्ण पदक, नेशनल बुक अवार्ड फॉर पोइट्री और पुलिट्ज़र पुरस्कार (पिक्चर्स फ्राम ब्रुगेल एंड अदर पोएम्स- कविता संग्रह) प्रमुख हैं । पोइट्री सोसाइटी ऑफ अमेरिका उनके सम्मान में उनके नाम पर वार्षिक पुरस्कार प्रदान करती है ।
विलियम्स ने MARCH शीर्षक से कुछ कविताओं की शृंखला लिखी थी । विलियम्स के MARCH में मुझे फागुनी ध्वनियाँ और खुशबू महसूस हुई इसलिए मैंने अनुवादों का शीर्षक "फागुन" रखा है । दो कवितायें और उनका मेरे द्वारा किया गया भावानुवाद प्रस्तुत है :

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MARCH- 1
Winter is long in this climate
and spring—a matter of a few days
only,—a flower or two picked
from mud or from among wet leaves
or at best against treacherous
bitterness of wind, and sky shining
teasingly, then closing in black
and sudden, with fierce jaws.


भावानुवाद : फागुन - 1
यहाँ मीलों लंबी सर्दी होती है
और वसंत चार दिनों का मेहमान -
केवल एक- दो फूल अपना सिर उठा लेते हैं
कीचड़ से या गीली पत्तियों के बीच से
या सारे दगाबाज़ों को धता बताते हुए
हवा में घूमती निबौली की गंध और आकाश की चमक
जैसे कोई अंधेरे में छुपता-दिखता
और अचानक, भयंकर जबड़े खोल देता ।
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MARCH- 2
March,
you remind me of
the pyramids, our pyramids—
stript of the polished stone
that used to guard them!

March,
you are like Fra Angelico
at Fiesole, painting on plaster!

March,
you are like a band of
young poets that have not learned
the blessedness of warmth
(or have forgotten it).

At any rate—
I am moved to write poetry
for the warmth there is in it
and for the loneliness—
a poem that shall have you
in it March.


भावानुवाद फागुन -2
फागुन
तुमने मुझे सुधि दिलाई
पिरामिडों की, हमारे पिरामिडों की -
और चमकते पत्थरों की सिलों की
जो उनकी रक्षा करती थीं !

फागुन,
तुम बिलकुल वैसे ही हो
जैसे फिएसोले (*) में
प्लास्टर पर उकेरी गई फ्रा एंजेलिको (**) की पेंटिंग!

फागुन,
तुम युवा कवियों के उछलते दल की तरह हो
जिन्होने नहीं पाया है
गर्माहट का स्वाद
(या जो इसे पा कर भूल गए हैं)।

किसी भी कीमत पर-
मैं ऐसी कविता लिखने के लिए प्रवृत्त हूं
जो गर्माहट में होगी
और जो अकेलेपन के लिए होगी-
एक ऐसी कविता जो सबमें होगी
और जिसमें फागुन होगा ।

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फिएसोले (*)- इटली का एक पुराना शहर ।
फ्रा एंजेलिको (**)- इटली के महान चित्रकार किनकी कर्मस्थली फिएसोले शहर था ।
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डिसक्लेमर :
ये पोस्ट पूर्णतया कॉपीराइट प्रोटेक्टेड है, ये किसी भी अन्य लेख या बौद्धिक संम्पति की नकल नहीं है । इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है । अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी ।
© आनंदकृष्ण
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शुक्रवार, 27 मार्च 2020

अनुवाद





MARY ELIZABETH COLERIDGE 
(23 SEPTEMBER 1861-25 AUGUST 1907)

इंग्लिश कवयित्री मैरी एलीज़ाबेथ कोलरिज (1861-1907) 
की एक कविता का हिन्दी भावानुवाद

My True Love Hath My Heart and I Have His
   
None ever was in love with me but grief.   
She wooed my from the day that I was born;
She stole my playthings first, the jealous thief,   
And left me there forlorn.

The birds that in my garden would have sung,   
She scared away with her unending moan;
She slew my lovers too when I was young,   
And left me there alone.

Grief, I have cursed thee often--now at last   
To hate thy name I am no longer free;
Caught in thy bony arms and prisoned fast,   
I love no love but thee.



मेरे सच्चे प्रेम ने पाया मेरा दिल और मैंने उसका

मुझसे किसी ने प्यार नहीं किया
किन्तु पीड़ा ने किया ।
वह मेरे जन्म से मेरा साथ गहे है ।
ईर्ष्यालु चोर है वह पीड़ा
जिसने पहले मेरे खिलौने चुराये
और फिर छोड़ दिया मुझे मेरी रिक्तता के साथ ।

मेरे बाग में चहकती चिड़ियाँ
उसकी अंतहीन कराहों से डरती हैं ।
उसने मुझसे मेरी मुहब्बत छीन ली
जब मुझे उसकी ज़रूरत थी ।
और फिर छोड़ दिया मुझे एकाकी ।

ओ मेरे पीड़ा ! मैं तुझसे नाराज़ हूँपर-
मेरे पास वक़्त नहीं बचा है तुझसे नफरत करने का ।
तेरी बलिष्ठ बाँहों में जकड़ कर क़ैद हुई मैं-
प्रेम नहींबस तुझे ही चाहती हूँ ।

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गुरुवार, 19 मार्च 2020

अनुवाद


किशोरावस्था से ही ओशो और जे कृष्णमूर्ति मुझे बहुत आकर्षित करते हैं । बाद में आचार्य शंकर और विवेकानंद को पढ़ा तो दिशा और स्पष्ट हुई । इन चारों में पर्याप्त भिन्नता होते हुए भी इनकी दृष्टि की व्यापक क्रांतिधर्मिता को ग्रहण करने का मेरा प्रयास अभी भी जारी हैं ।
आज शाम को एक मित्र से बातचीत के दौरान मैंने जे कृष्णमूर्ति का अंग्रेज़ी का एक कथन उद्धृत किया तो साथ साथ ही मेरे भीतर का अनुवादक भी मचल उठा । लगभग ऐसे ही दौर से इस समय मैं गुज़र भी रहा हूँ । लिहाजा मुलाहिजा फरमाइए मेरे द्वारा हिन्दी में अनूदित जे कृष्णमूर्ति का सवाल और कोशिश कीजिए इसका उत्तर खोजने की : -
"युद्ध हमारी आंतरिक प्रवृत्तियों की बाह्य अभिव्यक्ति है; हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों का विस्तार मात्र है । वह बहुत बड़े रूप में, बहुत निर्मम और बहुत विध्वंसक तो है किन्तु वह हमारे निजी कार्यकलापों का समेकित परिणाम भी है । इसीलिए आप और हम ही युद्ध के लिए ज़िम्मेवार हैं और यह समझ चुकने के बाद हमें ही यह भी सोचना होगा कि इसे रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं -!"



रविवार, 1 मार्च 2020

गीत की आपबीती -3

सोलह बरस की बाली उमर को सलाम ......

(राग अहीर भैरव में प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति)
(पहली बार फेसबुक वाल पर 08 फरवरी 2019 को प्रकाशित किया )



फरवरी का दूसरा सप्ताह चल रहा है । प्रायः इस समय तक प्रेम की ऋतु वसंत का आगमन हो चुका होता है । यह समय जहां एक ओर प्रकृति के उल्लसित, उन्मादित और मदालस होने का समय है वहीं दूसरी ओर भारतीय परंपरा के वसंतोत्सव और पाश्चात्य परंपरा के वेलेंटाइन डे के उत्सवों का भी समय है । भीषण जाड़े से कंपकपाए प्राणियों और वनस्पतियों के अंतस्थल वातावरण में घुलती हुई हल्की तपिश से जीवंत हो उठते हैं और उनमें ऊर्जा का संचार हो उठता है । एक ओर रंग बिरंगे फूल खिल कर धरती की प्रसन्नता का यशोगान करते हैं तो दूसरी ओर वैसे ही रंग बिरंगे फूल प्राणियों के मन में भी खिल उठते हैं । और ऐसे समय में ही प्रेम अपने सभी रूपों के साथ सारी सृष्टि में विस्तार पाता है ।
हिन्दी फिल्मों में गीतों की समृद्ध परंपरा है । जीवन के प्रत्येक आयाम के लिए फिल्मों में अर्थवान गीत हैं । फिर भी प्रेम गीतों की संख्या सर्वाधिक है । इन गीतों ने प्रेम के सभी क्षेत्रों को शब्द और स्वर दिये हैं । इनकी सूक्ष्म अनुभूतियाँ बहुत अपनत्व के साथ श्रोता को अपने साथ बांध लेती हैं और उसके साथ एकाकार हो जाती हैं । सबके पास अपनी अपनी स्मृतियाँ होती हैं जो वसंत ऋतु में अपनी समग्र चेतना के साथ अंगड़ाइयाँ ले कर टहोकती हैं ।
फिल्म एक दूजे के लिएसन 1981 में रिलीज़ हुई थी । यह कमलहासन और रति अग्निहोत्री की पहली हिन्दी फिल्म थी जिसमें उन्होने किशोरावस्था के उछाह भरे निश्छल प्रेम को ऐसी अभिव्यक्ति दी थी कि उस समय का संभवतः प्रत्येक लड़का वासूबन गया था और हर लड़की अपने आप में सपनाको देखने लगी थी । फिल्म के दुखांत पर इस फिल्म की आलोचना हुई थी पर उसका कोई खास असर नहीं हुआ और फिल्म सुपरहिट रही ।
इस फिल्म में आनंद बख्शी के लिखे हुए 5 गीत थे जिन्हें लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने संगीतबद्ध किया था । इन गीतों को स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, एस पी बालासुब्रमण्यम, अनुराधा पोडवाल तथा अनूप जलोटा ने स्वर दिये थे । एस पी बालासुब्रमण्यम की यह पहली हिन्दी फिल्म थी । मुकेश और मोहम्मद रफी के असामयिक निधन से दरिद्र हो चुकी हिन्दी सिने-संगीत की पुरुष आवाज़ की उम्मीद की उज्ज्वल किरण के रूप में एस पी बालासुब्रमण्यम को हाथों हाथ लिया गया । उन्हें इस फिल्म में सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला । गीतकार आनंद बख्शी को गीत तेरे मेरे बीच में ...के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला । फिल्म के सारे गीत सुपरहिट हुए ।
मैं इस फिल्म के उस गीत की बात करूंगा जो फिल्म फेयर के लिए नामित तो हुआ था पर उसे ये पुरस्कार नहीं मिला था । इसका कारण समझ पाने में मैं आज भी असमर्थ हूँ । बहरहाल पहले गीत सोलह बरस की बाली उमर को सलाम.....की चर्चा -
इस गीत की प्रारम्भिक दो पंक्तियाँ कोशिश कर के देख ले ............ बुझती हर चिंगारी ।अनूप जलोटा की आवाज़ में हैं । फिर पूरा गीत लता मंगेशकर के दैवी स्वर में जैसे जीवंत हो उठता है । इस गीत में प्रेम की सर्वोच्च स्थिति पर पहुँच कर वहाँ पहुंचाने वाली हर इकाई के प्रति, उसका अवदान याद करते हुए आभार व्यक्त किया गया है । यह प्रेम का वह उच्चतम बिन्दु है जहां सारे राग-द्वेष समाप्त हो जाते हैं, कोई बैर भाव नहीं, कोई लिप्सा नहीं और न ही कोई कामना बची रह जाती है, और शेष रह जाती है प्रेम की दिव्य व अलौकिक अनुभूति, गहन उष्णता और चिरंतन मुक्ति का निस्सीम आकाश -।
इस गीत को लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने राग अहीर भैरव में संगीतबद्ध किया था । राग अहीर भैरव दिन के पहले प्रहर का (लगभग प्रातः 6 बजे से 9 बजे तक का) राग है । यह राग भैरव थाट का राग है । इसके आरोह और अवरोह में सात सात स्वर होने के कारण इसकी जाति सम्पूर्ण सम्पूर्ण है । इस राग में ऋषभ (रे) और निषाद (नी) कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध लगते हैं । इस राग का वादी मध्यम (म) और संवादी षड्ज (स) है । इसमें भैरव और खमाज का समावेश होता है । इस राग को राग भैरव और राग काफी या राग भैरव और राग अभीरी का मिश्रण भी माना जाता है । इसका प्रारम्भिक हिस्सा राग भैरव के समान और बाद वाला हिस्सा राग काफी के समान होता है । यह गंभीर प्रकृति का राग है । ख्याल गायकी और तराने के लिए इस राग को सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है । इस शास्त्रीय राग में ख्याल और बड़ा ख्याल की गायकी बहुत लोकप्रिय है । भक्ति रचनाओं, और आध्यात्मिक प्रकार की रचनाओं के संगीत में भी इसका प्रचुरता से प्रयोग होता है । शायद इसी लिए लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने इस गंभीर राग का प्रयोग इस उछलकूद और मस्ती से भरी स्थिति के गीत के लिए किया होगा ।
आइये ! इस गीत में जो सलामछूट गए हैं उन्हें सलाम पेश करते हुए इस गीत को पढ़ें, सुनें और देखें । आनंद बख्शी साहब की कलम को सलाम, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल की सांगीतिक सामर्थ्य को सलाम, लता मंगेशकर की "सदाबहार सोलह बरस की बाली उमर" की आवाज़ को सलाम, अनूप जलोटा को सलाम और साथ ही वासूऔर सपनाको सलाम ................
कोशिश करके देख ले दरिया सारी नदियॉ सारी
दिल की लगी नहीं बुझती बुझती हर चिंगारी
सोलह बरस की ..
सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम
सलाम ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम
दुनियॉ में सबसे पहले जिसने ये दिल दिया
दुनियॉ के सबसे पहले दिलबर को सलाम
दिल से निकलने वाले रस्ते का शुक्रिया
दिल तक पहुँचने वाली डगर को सलाम
ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम
सलाम ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम
जिसमें जवान होकर बदनाम हम हुए
जिसमें जवान होकर बदनाम हम हुए
उस शहर, उस गली, उस घर को सलाम
जिसने हमें मिलाया, जिसने जुदा किया
उस वक़्त, उस घड़ी, उस गजर को सलाम
ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम
सलाम, ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम
मिलते रहे यहॉ हम ये है यहॉ लिखा
इस लिखावट की ज़ेरो-जबर को सलाम
साहिल की रेत पर यूं, लहरा उठा ये दिल
सागर में उठने वाली हर लहर को सलाम
इन मस्त गहरी गहरी आखों की झील में
जिसने हमें डुबोया उस भँवर को सलाम
घॅूघट को तोडकर जो सर से सरक गयी
ऐसी निगोडी धानी चुनर को सलाम
उलफत के दुश्मनों ने...
उलफत के दुश्मनों ने कोशिश हजार की
फिर भी नहीं झुकी जो, उस नजर को सलाम
ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम
सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम
सलाम ऐ प्यार तेरी, पहली नजर को सलाम

गीत का वीडियो देखने के लिए ये लिंक क्लिक करें : 
https://www.youtube.com/watch?v=322FOeeonf4
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डिसक्लेमर :
ये पोस्ट पूर्णतया कॉपीराइट प्रोटेक्टेड है, ये किसी भी अन्य लेख या बौद्धिक संम्पति की नकल नहीं है । इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है । अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
© anandkrishna आनंदकृष्ण
लेखक के द्वारा यह लेख पहली बार फेसबुक पर 08 फरवरी 2019 को प्रकाशित किया गया ।
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(पूनम ए चावला के अँग्रेजी उपन्यास Mumbai Mornings का हिन्दी अनुवाद)






गीत की आपबीती-2



अभिसार : प्रेम की सर्वोच्च अवस्था और राग शिवरंजनी में "बहारो फूल बरसाओ"  

'अभिसार' भारतीय साहित्यशास्त्र का पारिभाषिक शब्द है जो संस्कृत के “सृ” कृदंत से बना है । इसका अर्थ होता है- चलना, किसी दिशा में गतिमान होना । इससे बना हुआ शब्द “अभिसरण (convergent)” और इसका विरुद्धार्थी शब्द “अपसरण (divergent)” गणित के पारिभाषिक शब्द हैं । ये दोनों शब्द संख्याओं की श्रेणी (series) से संबन्धित है और क्रमशः अभिसारी श्रेणी (convergent series) और अपसारी श्रेणी (divergent series) का अध्ययन इनके अंतर्गत किया जाता है । इनके दो और सहोदर शब्द हैं – विसरण और परासरण जो विज्ञान के पारिभाषिक शब्द हैं । दो या दो से अधिक पदार्थों का स्वतः एक दूसरे से मिलकर समांग मिश्रण बनाने की क्रिया को विसरण (डिफ्यूजन) कहते हैं । इसमें किसी भी पदार्थ के कण किसी भी पदार्थ की ओर जा सकते हैं । परासरण क्रिया कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर जाते हैं और विलयन को समांगी करते हैं । ये दोनों क्रियाएँ आण्विक गति के कारण होती है ।
पर हमारा उद्देश्य गणित और विज्ञान को फिर से पढ़ने का नहीं है । हम बात कर रहे थे “अभिसार” की, हिन्दी और संस्कृत के बहुत प्यारे से शब्द की । संस्कृत साहित्य में इसका अर्थ है- "नायिका का नायक के पास स्वयं जाना" अथवा "दूती या सखी के द्वारा नायक को अपने पास बुलाना"। अभिसार की ओर प्रवृत्त होने वाली नायिका को 'अभिसारिका' कहते हैं । सामान्य रूप में नायक, नायिका के पास जाता है पर “अभिसार” की स्थिति असाधारण है । प्रेम में विह्वल, मिलन के लिए उत्सुक नायिका सारे बंधनों को छोड़-तोड़ कर अपने नायक से मिलने निकल पड़ती है और उससे मिल कर ही दम लेती है ('कामार्ताभिसरेत्‌ कांतं सारयेद्वाभिसारिका'- “दशरूपक”) । “भावप्रकाश निघंटु” और नाट्याचार्य भारत मुनि ने प्रिय से मिलन की उत्कट अभिलाषा को ही अभिसारिका का प्रधान लक्षण स्वीकार किया है ।
प्राचीन काल से आज तक “अभिसारिका” को समस्त प्रकार की नायिकाओं में सर्वाधिक आकर्षक और प्रेम की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यंजक स्वीकार किया गया है और उनके सम्मान में साहित्य रचा गया है । आजकल स्त्री विमर्श के नाम पर हो-हल्ला मचाने वाले प्राचीन साहित्य देखें तो पाएंगे कि जो शोरगुल वे मचा रहे हैं उस विषय पर कितना गंभीर काम बहुत पहले हो चुका है । कवियों के अपनी कविताओं में और चित्रकारों के अपने चित्रों के माध्यम से अभिसार के बहुत सुंदर और विशद वर्णन किए हैं ।
हमारी हिन्दी फिल्मों में चूंकि प्रेम और संगीत सर्वाधिक महत्वपूर्ण और अनिवार्य तत्व होते हैं, लिहाजा फिल्मी कहानियों में “अभिसार” की स्थितियों और अभिसार गीतों की भरपूर गुंजाइश होती है । फिल्मों के बहुत से अभिसार गीत लोकप्रिय हुए हैं । बहुत से चलताऊ किस्म के गीत भी आए जो खासे पसंद किए गए ।
मेरी पसंद के अभिसार गीत केवल दो हैं । पहला है- “मोरा गोरा रंग लई ले ...” । “फिल्म “बंदिनी” के लिए इसे गुलज़ार ने लिखा था । इस गीत का संगीत सचिन देव बर्मन का और स्वर लता मंगेशकर का है । गुलज़ार का यह पहला फिल्मी गीत है और यह उनका एकमात्र गीत है जो मुझे पसंद है । इस गीत की अभिसारिका “कृष्णाभिसारिका” है । इस गीत पर मैं अन्य संदर्भ के साथ बाद में चर्चा करूंगा ।
आज मैं बात करूंगा, मेरी नज़र में हिन्दी फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ अभिसार गीत की । इस गीत के बोल हैं – “बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है ..... ।” सन 1966 में आई फिल्म “सूरज” के लिए इस गीत को हसरत जयपुरी ने लिखा, शंकर-जयकिशन ने संगीतबद्ध किया और आवाज़ दी महान गायक मोहम्मद रफी ने । इस गीत को स्क्रीन पर उस समय के सुपरस्टार राजेन्द्र कुमार (डाकू सूरज सिंह) और वैजयंती माला (राजकुमारी अनुराधा सिंह) ने जीवंत किया । हालांकि ये फिल्म कुछ खास नहीं चली, पर इस गीत ने लोकप्रियता के मामले में इतिहास रच दिया ।
गीत के हालात कुछ इस तरह थे कि राजकुमारी अनुराधा सिंह को डाकू सूरज सिंह का अपहरण कर लेता है । राजकुमारी को उससे प्रेम हो जाता है । एक सुनसान स्थान पर सूरज सिंह रात भर राजकुमारी को रखता है । वहीं सूरज सिंह ये गीत गाता है । दोनों के चेहरे पर दैविक प्रेम की उज्ज्वल आभा दमक रही होती है । गीत के समाप्त होते होते राजकुमारी झूले पर सो जाती है और सूरज सिंह उसे जतन से सुखपूर्वक सुला देता है । वह सेट बहुत शानदार बनाया गया है और हाथी, खरगोश मोर आदि का बहुत सुंदर उपयोग किया गया है । बहुत शानदार और उच्चतम स्तर के प्रेम को फिल्मों में बहुत कम दृश्यों में देखा गया है, यह दृश्य उनमें से एक है ।
अब एक सवाल उठ सकता है कि अभिसार गीत तो अभिसारिका को गाना चाहिए था, फिर ये पुरुष स्वर में क्यों-? इसका जवाब इस गीत को देखते हुए ही मिल जाएगा । ये गीत पुरुष स्वर में ज़रूर है किन्तु इसमें अभिसारिका की उद्दाम भावनाएं खुल कर अभिव्यक्त हुई हैं । ये कहा जा सकता है कि अभिसारिका के भावों को नायक ने शब्द दिये हैं । दूसरे शब्दों में ये भी कि दोनों प्रेम के उस उच्चतम बिन्दु पर पहुँच चुके हैं जहां सारे भेद समाप्त हो जाते हैं और दोनों एकरूप हो जाते हैं (अर्थात समांग हो जाते हैं । अब देखिये इस पोस्ट के ऊपरी हिस्से में जहां विज्ञान के पारिभाषिक शब्द विसरण और परासरण के बारे में चर्चा की गई है । )
यह गीत उस समय के लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम “बिनाका गीतमाला” में सन 1966 में चोटी के पायदान पर था ।
अब हम गीत की शास्त्रीयता की बात करें । ये गीत राग शिवरंजनी में है । राग शिवरंजनी अर्धरात्रि का राग है । राग भूपाली में शुद्ध गांधार के स्थान पर यदि कोमल गांधार लगाया जाये तो राग शिवरंजनी की निष्पत्ति होती है । अर्धरात्रि का होने के कारण इसमें बहुत गंभीरता है और विलंबित लय में इसका अद्वितीय प्रभाव होता है । अर्धरात्रि का होने के कारण ही इसमें संयोग शृंगार, प्रेम और मिलन की रचनाएँ प्रमुखता से की जाती हैं ।
तो आइये ! राग शिवरंजनी में संगीतबद्ध इस बेहतरीन गीत को देखें, सुनें और प्रेम की उच्चता को, उसकी आध्यात्मिकता और देवत्व को अनुभूत करें ।
बहारो फूल बरसाओ
मेरा महबूब आया है – 2
हवाओं रागिनी गाओ
मेरा महबूब आया है – 2
ओ लाली फूल की मेंहँदी लगा इन गोरे हाथों में
उतर आ ऐ घटा काजल, लगा इन प्यारी आँखों में
सितारों माँग भर जाओ
मेरा महबूब आया है – 2
नज़ारों हर तरफ़ अब तान दो इक नूर की चादर
बडा शर्मीला दिलबर है, चला जाये न शरमा कर
ज़रा तुम दिल को बहलाओ
मेरा महबूब आया है – 2
सजाई है जवाँ कलियों ने अब ये सेज उल्फ़त की
इन्हें मालूम था आएगी इक दिन ऋतु मुहब्बत की
फ़िज़ाओं रंग बिखराओ
मेरा महबूब आया है – 2
बहारो..............
डिसक्लेमर :
ये पोस्ट पूर्णतया कॉपीराइट प्रोटेक्टेड है, ये किसी भी अन्य लेख या बौद्धिक संम्पति की नकल नहीं है । इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
© anandkrishna आनंदकृष्ण
पहली बार मेरी फेसबुक वाल पर 07 अगस्त 2017 को प्रकाशित किया ।