गीत : तुम बिन ............
तुम बिन जग से मेले रीते ।
सूने पथ, अंधियारी गलियां, हालाहल सा पीते।
आशाएँ बस खेल खिलातीं,
सपनों की दुनिया दिखलातीं,
और प्रतीक्षा अंत न पाती -
उजड़ा-उजड़ा इक-इक दिन भी, बरस-बरस सा बीते ।
बालू के घर ज्यों ढह जाते,
शंख-सीपियां बह-बह आते,
सतत कहानी कहते जाते -
जीवन भर हम रहे हारते, आंसू ही बस जीते ।
कैसी है इस मन की माया,
जिसने बस तृष्णा को गाया,
पर दुनिया ने ये सिखलाया -
बोलो । सबको मिल पाते हैं, साथ कहां मनचीते ?
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