गुरुवार, 19 मार्च 2020

अनुवाद


किशोरावस्था से ही ओशो और जे कृष्णमूर्ति मुझे बहुत आकर्षित करते हैं । बाद में आचार्य शंकर और विवेकानंद को पढ़ा तो दिशा और स्पष्ट हुई । इन चारों में पर्याप्त भिन्नता होते हुए भी इनकी दृष्टि की व्यापक क्रांतिधर्मिता को ग्रहण करने का मेरा प्रयास अभी भी जारी हैं ।
आज शाम को एक मित्र से बातचीत के दौरान मैंने जे कृष्णमूर्ति का अंग्रेज़ी का एक कथन उद्धृत किया तो साथ साथ ही मेरे भीतर का अनुवादक भी मचल उठा । लगभग ऐसे ही दौर से इस समय मैं गुज़र भी रहा हूँ । लिहाजा मुलाहिजा फरमाइए मेरे द्वारा हिन्दी में अनूदित जे कृष्णमूर्ति का सवाल और कोशिश कीजिए इसका उत्तर खोजने की : -
"युद्ध हमारी आंतरिक प्रवृत्तियों की बाह्य अभिव्यक्ति है; हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों का विस्तार मात्र है । वह बहुत बड़े रूप में, बहुत निर्मम और बहुत विध्वंसक तो है किन्तु वह हमारे निजी कार्यकलापों का समेकित परिणाम भी है । इसीलिए आप और हम ही युद्ध के लिए ज़िम्मेवार हैं और यह समझ चुकने के बाद हमें ही यह भी सोचना होगा कि इसे रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं -!"



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