रविवार, 1 मार्च 2020

गीत की आपबीती-2



अभिसार : प्रेम की सर्वोच्च अवस्था और राग शिवरंजनी में "बहारो फूल बरसाओ"  

'अभिसार' भारतीय साहित्यशास्त्र का पारिभाषिक शब्द है जो संस्कृत के “सृ” कृदंत से बना है । इसका अर्थ होता है- चलना, किसी दिशा में गतिमान होना । इससे बना हुआ शब्द “अभिसरण (convergent)” और इसका विरुद्धार्थी शब्द “अपसरण (divergent)” गणित के पारिभाषिक शब्द हैं । ये दोनों शब्द संख्याओं की श्रेणी (series) से संबन्धित है और क्रमशः अभिसारी श्रेणी (convergent series) और अपसारी श्रेणी (divergent series) का अध्ययन इनके अंतर्गत किया जाता है । इनके दो और सहोदर शब्द हैं – विसरण और परासरण जो विज्ञान के पारिभाषिक शब्द हैं । दो या दो से अधिक पदार्थों का स्वतः एक दूसरे से मिलकर समांग मिश्रण बनाने की क्रिया को विसरण (डिफ्यूजन) कहते हैं । इसमें किसी भी पदार्थ के कण किसी भी पदार्थ की ओर जा सकते हैं । परासरण क्रिया कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर जाते हैं और विलयन को समांगी करते हैं । ये दोनों क्रियाएँ आण्विक गति के कारण होती है ।
पर हमारा उद्देश्य गणित और विज्ञान को फिर से पढ़ने का नहीं है । हम बात कर रहे थे “अभिसार” की, हिन्दी और संस्कृत के बहुत प्यारे से शब्द की । संस्कृत साहित्य में इसका अर्थ है- "नायिका का नायक के पास स्वयं जाना" अथवा "दूती या सखी के द्वारा नायक को अपने पास बुलाना"। अभिसार की ओर प्रवृत्त होने वाली नायिका को 'अभिसारिका' कहते हैं । सामान्य रूप में नायक, नायिका के पास जाता है पर “अभिसार” की स्थिति असाधारण है । प्रेम में विह्वल, मिलन के लिए उत्सुक नायिका सारे बंधनों को छोड़-तोड़ कर अपने नायक से मिलने निकल पड़ती है और उससे मिल कर ही दम लेती है ('कामार्ताभिसरेत्‌ कांतं सारयेद्वाभिसारिका'- “दशरूपक”) । “भावप्रकाश निघंटु” और नाट्याचार्य भारत मुनि ने प्रिय से मिलन की उत्कट अभिलाषा को ही अभिसारिका का प्रधान लक्षण स्वीकार किया है ।
प्राचीन काल से आज तक “अभिसारिका” को समस्त प्रकार की नायिकाओं में सर्वाधिक आकर्षक और प्रेम की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यंजक स्वीकार किया गया है और उनके सम्मान में साहित्य रचा गया है । आजकल स्त्री विमर्श के नाम पर हो-हल्ला मचाने वाले प्राचीन साहित्य देखें तो पाएंगे कि जो शोरगुल वे मचा रहे हैं उस विषय पर कितना गंभीर काम बहुत पहले हो चुका है । कवियों के अपनी कविताओं में और चित्रकारों के अपने चित्रों के माध्यम से अभिसार के बहुत सुंदर और विशद वर्णन किए हैं ।
हमारी हिन्दी फिल्मों में चूंकि प्रेम और संगीत सर्वाधिक महत्वपूर्ण और अनिवार्य तत्व होते हैं, लिहाजा फिल्मी कहानियों में “अभिसार” की स्थितियों और अभिसार गीतों की भरपूर गुंजाइश होती है । फिल्मों के बहुत से अभिसार गीत लोकप्रिय हुए हैं । बहुत से चलताऊ किस्म के गीत भी आए जो खासे पसंद किए गए ।
मेरी पसंद के अभिसार गीत केवल दो हैं । पहला है- “मोरा गोरा रंग लई ले ...” । “फिल्म “बंदिनी” के लिए इसे गुलज़ार ने लिखा था । इस गीत का संगीत सचिन देव बर्मन का और स्वर लता मंगेशकर का है । गुलज़ार का यह पहला फिल्मी गीत है और यह उनका एकमात्र गीत है जो मुझे पसंद है । इस गीत की अभिसारिका “कृष्णाभिसारिका” है । इस गीत पर मैं अन्य संदर्भ के साथ बाद में चर्चा करूंगा ।
आज मैं बात करूंगा, मेरी नज़र में हिन्दी फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ अभिसार गीत की । इस गीत के बोल हैं – “बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है ..... ।” सन 1966 में आई फिल्म “सूरज” के लिए इस गीत को हसरत जयपुरी ने लिखा, शंकर-जयकिशन ने संगीतबद्ध किया और आवाज़ दी महान गायक मोहम्मद रफी ने । इस गीत को स्क्रीन पर उस समय के सुपरस्टार राजेन्द्र कुमार (डाकू सूरज सिंह) और वैजयंती माला (राजकुमारी अनुराधा सिंह) ने जीवंत किया । हालांकि ये फिल्म कुछ खास नहीं चली, पर इस गीत ने लोकप्रियता के मामले में इतिहास रच दिया ।
गीत के हालात कुछ इस तरह थे कि राजकुमारी अनुराधा सिंह को डाकू सूरज सिंह का अपहरण कर लेता है । राजकुमारी को उससे प्रेम हो जाता है । एक सुनसान स्थान पर सूरज सिंह रात भर राजकुमारी को रखता है । वहीं सूरज सिंह ये गीत गाता है । दोनों के चेहरे पर दैविक प्रेम की उज्ज्वल आभा दमक रही होती है । गीत के समाप्त होते होते राजकुमारी झूले पर सो जाती है और सूरज सिंह उसे जतन से सुखपूर्वक सुला देता है । वह सेट बहुत शानदार बनाया गया है और हाथी, खरगोश मोर आदि का बहुत सुंदर उपयोग किया गया है । बहुत शानदार और उच्चतम स्तर के प्रेम को फिल्मों में बहुत कम दृश्यों में देखा गया है, यह दृश्य उनमें से एक है ।
अब एक सवाल उठ सकता है कि अभिसार गीत तो अभिसारिका को गाना चाहिए था, फिर ये पुरुष स्वर में क्यों-? इसका जवाब इस गीत को देखते हुए ही मिल जाएगा । ये गीत पुरुष स्वर में ज़रूर है किन्तु इसमें अभिसारिका की उद्दाम भावनाएं खुल कर अभिव्यक्त हुई हैं । ये कहा जा सकता है कि अभिसारिका के भावों को नायक ने शब्द दिये हैं । दूसरे शब्दों में ये भी कि दोनों प्रेम के उस उच्चतम बिन्दु पर पहुँच चुके हैं जहां सारे भेद समाप्त हो जाते हैं और दोनों एकरूप हो जाते हैं (अर्थात समांग हो जाते हैं । अब देखिये इस पोस्ट के ऊपरी हिस्से में जहां विज्ञान के पारिभाषिक शब्द विसरण और परासरण के बारे में चर्चा की गई है । )
यह गीत उस समय के लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम “बिनाका गीतमाला” में सन 1966 में चोटी के पायदान पर था ।
अब हम गीत की शास्त्रीयता की बात करें । ये गीत राग शिवरंजनी में है । राग शिवरंजनी अर्धरात्रि का राग है । राग भूपाली में शुद्ध गांधार के स्थान पर यदि कोमल गांधार लगाया जाये तो राग शिवरंजनी की निष्पत्ति होती है । अर्धरात्रि का होने के कारण इसमें बहुत गंभीरता है और विलंबित लय में इसका अद्वितीय प्रभाव होता है । अर्धरात्रि का होने के कारण ही इसमें संयोग शृंगार, प्रेम और मिलन की रचनाएँ प्रमुखता से की जाती हैं ।
तो आइये ! राग शिवरंजनी में संगीतबद्ध इस बेहतरीन गीत को देखें, सुनें और प्रेम की उच्चता को, उसकी आध्यात्मिकता और देवत्व को अनुभूत करें ।
बहारो फूल बरसाओ
मेरा महबूब आया है – 2
हवाओं रागिनी गाओ
मेरा महबूब आया है – 2
ओ लाली फूल की मेंहँदी लगा इन गोरे हाथों में
उतर आ ऐ घटा काजल, लगा इन प्यारी आँखों में
सितारों माँग भर जाओ
मेरा महबूब आया है – 2
नज़ारों हर तरफ़ अब तान दो इक नूर की चादर
बडा शर्मीला दिलबर है, चला जाये न शरमा कर
ज़रा तुम दिल को बहलाओ
मेरा महबूब आया है – 2
सजाई है जवाँ कलियों ने अब ये सेज उल्फ़त की
इन्हें मालूम था आएगी इक दिन ऋतु मुहब्बत की
फ़िज़ाओं रंग बिखराओ
मेरा महबूब आया है – 2
बहारो..............
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© anandkrishna आनंदकृष्ण
पहली बार मेरी फेसबुक वाल पर 07 अगस्त 2017 को प्रकाशित किया । 

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