रविवार, 29 दिसंबर 2013


राग तेलंग की कविता आध्यात्मिकता और सम्मान के स्वरों की पुनर्वापिसी का जीवंत दस्तावेज़ है :
“कविता ही आदमी को बचाएगी” और “अंतर्यात्रा” कविता संग्रहों के लोकार्पण में विद्वानों के विचार


भोपाल । विगत दिवस मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में समकालीन कविता के समर्थ हस्ताक्षर राग तेलंग की दो काव्यकृतियों “कविता ही आदमी को बचाएगी” और “अंतर्यात्रा” का लोकार्पण एनआईटीटीटीआर स्थित मणि सभागार में वरिष्ठ साहित्यकार श्री संतोष चौबे की अध्यक्षता, वरिष्ठ कवि श्री राजेश जोशी के मुख्य आतिथ्य, वरिष्ठ कलाविद साहित्यकार श्री ध्रुव शुक्ल के विशिष्ट आतिथ्य और युवा कवि-आलोचक श्री आनंद कृष्ण के संचालन में सम्पन्न हुआ । इस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष श्री पलाश सुरजन तथा श्री अरुण कुमार, उपमहाप्रबंधक, बीएसएनएल विशेष रूप से उपस्थित थे । कार्यक्रम के प्रारम्भ में श्री मुकेश वर्मा, श्री बलराम गुमास्ता, श्री घनश्याम तिवारी, श्री प्रजापति ने अतिथियों का स्वागत किया । तत्पश्चात अतिथियों ने दोनों कृतियाँ लोकार्पित कीं ।

आनंद कृष्ण ने दोनों कृतियों का संक्षिप्त परिचय देते हुये कहा कि वस्तुतः कविता लिखी नहीं जाती; उसका अवतरण होता है, वह नाज़िल होती है । इस अवतरण के दौरान रचनाकार एक साथ दो यात्राएं करता है । एक यात्रा भीतर से बाहर की ओर होती है जिसमें वह सामाजिक सरोकारों की पड़ताल करता है और दूसरी यात्रा बाहर से भीतर की ओर होती है जिसमें वैयक्तिक अनुभूतियों की सामाजिक प्रतिबद्धताएं स्थापित करता है । राग तेलंग की दोनों कृतियाँ इन दोनों यात्राओं के मध्य अद्भुत सामंजस्य का श्रेष्ठ उदाहरण हैं ।

राग तेलंग ने अपने वक्तव्य में अपनी रचना धर्मिता और प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुये दोनों संग्रहों से “अचार”, “कढ़ी” “लड्डू”.......... कविताओं का पाठ किया ।

“कविता ही आदमी को बचाएगी” पर अपने समीक्षात्मक आलेख में वरिष्ठ कवि-शायर श्री ज़हीर कुरेशी ने राग तेलंग की कविताओं के प्रति प्रतिबद्धता और दृढ़ विश्वास की सराहना करते हुये .......... इसी कृति पर श्री मुकेश मिश्रा (गाजियाबाद) के समीक्षात्मक आलेख का वाचन सुश्री उषा प्रारब्ध ने किया । दूसरी काव्यकृति “अन्तर्यात्रा” पर श्री राजेंद्र नागदेव (भोपाल) तथा सुश्री ममता शर्मा (खंडवा) ने  समीक्षात्मक आलेख प्रस्तुत किए ।

विशेष अतिथि श्री ध्रुव शुक्ल ने अपने वक्तव्य में समकालीन समय में कविता से अध्यात्म और सम्मान के तिरोहित होते जाने पर चिंता प्रकट करते हुये कहा कि इसी कारण से कविता की संप्रेषणीयता में रुकावट आती है । राग तेलंग की काव्यकृति “अंतर्यात्रा” का ब्लर्ब लिखते समय उनकी कविताओं को ध्यान से पढ़ते हुये यह संतोष और आश्वस्ति हुई  है कि उनको संप्रेषणीयता के मौलिक तत्वों की गहन पहचान है और अपनी कविता में वे उन्हें पर्याप्त महत्व भी दे रहे हैं ।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि श्री राजेश जोशी ने राग तेलंग की कविताओं के कथ्य और शिल्प के बारे में चर्चा करते हुये कहा कि उनके शिल्प में क्रमिक निखार आता गया है और अब वे एक समर्थ कवि के रूप में स्थापित हो गए हैं ।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार श्री संतोष चौबे ने कहा कि वर्तमान समय में स्वतन्त्रता और समानता पर बहुत ज़ोर दिया जाता है । किन्तु ये दोनों विपरीत ध्रुव हैं । जहां स्वतन्त्रता होगी वहाँ समानता नहीं हो सकती और जहां समानता होगी वहाँ स्वतन्त्रता नहीं हो सकती, क्योंकि स्वतत्रता वैयक्तिक अनुभूति है और समानता सामाजिक अनुभूति । इन दोनों के बीच तालमेल बैठाने के लिए एक तीसरे तत्व, भाईचारा की ज़रूरत होती है । यह कार्य कविता कर सकती है और राग तेलंग जैसे सतर्क रचनाकार इसे बखूबी कर भी रहे हैं ।

समारोह में बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार बुद्धिजीवी उपस्थित थे जिन्होंने राग तेलांग को बधाई और शुभकामनायें दीं । श्री पलाश सुरजन के धन्यवाद ज्ञापन के बाद कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । 

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