आज कुछ पुराने कागजात खंगालते वक्त एक पुरानी रचना मिली जिस पर तारीख पड़ी थी- १५ जनवरी १९९२। इसे पढ़ते हुए कुछ पुरानी स्मृतियाँ भी उछल-कूद कर गईं। इसे केवल मेरी प्रारम्भिक रचनाओं के रूप में देखें.
गीत गाते रहे गुनगुनाते रहे।
रात भर महफिलों को सजाते रहे।
सबने देखी हमारी हंसी और हम-
आंसुओं से स्वयं को छुपाते रहे।
सुर्ख फूलों के आँचल ये लिख जायेंगे-
हम बनाते रहे वो मिटाते रहे।
रेत पर नक्शे-पा छोड़ने की सज़ा
उम्र भर फासलों में ही पाते रहे।
सबने यारों पे भी शक किया है मगर-
हम रकीबों को कासिद बनाते रहे।
हमको आती है यारो! ये सुनकर हंसी-
"वो हमारे लिए दिल जलाते रहे। "
नीली आंखों के खंजर चुभे जब उन्हें-
दर्द में "कृष्ण" के गीत गाते रहे।
वाह वाह!! प्रारंभिक रचनाओं की दमखम देखते बनती है.
जवाब देंहटाएंare wah!! bahut khoob !!!
जवाब देंहटाएंnamaskar mitr,
जवाब देंहटाएंaapki posts padhi , sab ki sab behatreen hai .. aapki kavitao me jo bhaav hai ,wo bahut hi gahre hai ..
aapko badhai .. prem ke upar likhi gayi ye kavita acchi lagi ..jald hi kabhi jabapur aaya to aapse milunga
dhanywad.
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
Vijay
nihsandeh apki lekhni ka jadoo to madhoshi ki parakashtha thak pahuchata.
जवाब देंहटाएंdevendra khare
http://devendrakhare.blogspot.com
nihsandeh apki lekhni ka jadoo to safalta ki parakashtha svayam hi bayan karta hai.
जवाब देंहटाएंdevendra khare
http://devendrakhare.blogspot.com
Good evening sir....
जवाब देंहटाएंaap mere blog par aaye vohi hamara saubhgya hai..
sorry mai thikse kavita nhi kar sakti .
but i try it kuchh thoda...