आने वाली 15 जुलाई से टेलीग्राम सेवा बंद की जा रही है........ टेलीग्राम की मेरे पास कुछ स्मृतियाँ हैं :
1- पहला टेलीग्राम जो मुझे याद है जो मेरे नाम से आया था वो किया था हमारे प्यारे मोहन मामा यानि श्री आनंद मोहन सिन्हा ने (नामराशि कहते हैं वो मुझे; क्योंकि उनका और मेरा नाम एक जैसा है) । मैं जिला विज्ञान मेला की प्रतियोगिता मे प्रथम आया था तब उन्होने बधाई और आशीर्वाद का ये टेलीग्राम भेजा था........ तारीख तो याद नहीं पर इतना याद है की वो 1981 के सितंबर माह का कोई दिन था .....
2- दूसरा टेलीग्राम मुझे पॉलिटैक्निक मेन पढ़ते समय घर से मिला था । वो 1985 की फरवरी का अंतिम सप्ताह था । पूरे मध्यप्रदेश मेन उन दिनों "आरक्षण विरोधी आंदोलन" चल रहा था । उसी के अंतर्गत मेरा नाम आमरण अनशनकारियों की सूची में दैनिक भास्कर, नई दुनिया आदि बड़े अखबारों में छपा तो घर में सभी विचलित हो गए । तब मुझे "मदर सीरिअस कम सून" का टेलीग्राम मिला था।
3- पोलिटेकनिक में ही पढ़ते समय पुलीस विभाग में वायरलेस आपरेटर के पद पर कार्यरत मेरे अग्रजवत मित्र श्री महेश भाई ने मुझे मोर्स कोड, “की” चलाना और संदेश भेजना सिखाया । वे इस बात से बहुत चकित होते थे की मैं लेफ्ट हेंडर हो कर भी “की” को इतनी तेज़ी से आपरेट कैसे कर लेता था ।
3- इसके बाद मुझे कुछ ऐसे टेलीग्राम याद हैं जो मैंने किए थे और जिनको याद कर के आज भी आँसू आते हैं । वो तारीख थी 26 जुलाई 1993 । स्थान जबलपुर का सीटीओ । मैं दिल कडा कर के लगातार सधे हुये हाथों से टेलेग्राम के फार्मों पर लिखे जा रहा था- 'मदर एक्स्पायर्ड" ...................
4- सितंबर 1994 में मेरी छोटी बहिन श्रीमति मनीषा श्रीवास्तव को प्रथम पुत्री रत्न की प्राप्ति का टेलेग्राम मिला था जो उसके पति चिरंजीव अभिलाष श्रीवास्तव ने किया था । वह बिटिया इस साल 12 वी पास हो कर कालेज के तयारी में है ।
5- अक्तूबर 1995 में चि॰ अभिलाष जी का ही दूसरा टेलीग्राम आया था जिसमें पुत्र रत्न की प्राप्ति की सूचना थी ।
और तो फिलहाल कोई और घटनाएँ याद नहीं आ रही है........... मोर्स कोड को सहेज कर रखा जाये....
1- पहला टेलीग्राम जो मुझे याद है जो मेरे नाम से आया था वो किया था हमारे प्यारे मोहन मामा यानि श्री आनंद मोहन सिन्हा ने (नामराशि कहते हैं वो मुझे; क्योंकि उनका और मेरा नाम एक जैसा है) । मैं जिला विज्ञान मेला की प्रतियोगिता मे प्रथम आया था तब उन्होने बधाई और आशीर्वाद का ये टेलीग्राम भेजा था........ तारीख तो याद नहीं पर इतना याद है की वो 1981 के सितंबर माह का कोई दिन था .....
2- दूसरा टेलीग्राम मुझे पॉलिटैक्निक मेन पढ़ते समय घर से मिला था । वो 1985 की फरवरी का अंतिम सप्ताह था । पूरे मध्यप्रदेश मेन उन दिनों "आरक्षण विरोधी आंदोलन" चल रहा था । उसी के अंतर्गत मेरा नाम आमरण अनशनकारियों की सूची में दैनिक भास्कर, नई दुनिया आदि बड़े अखबारों में छपा तो घर में सभी विचलित हो गए । तब मुझे "मदर सीरिअस कम सून" का टेलीग्राम मिला था।
3- पोलिटेकनिक में ही पढ़ते समय पुलीस विभाग में वायरलेस आपरेटर के पद पर कार्यरत मेरे अग्रजवत मित्र श्री महेश भाई ने मुझे मोर्स कोड, “की” चलाना और संदेश भेजना सिखाया । वे इस बात से बहुत चकित होते थे की मैं लेफ्ट हेंडर हो कर भी “की” को इतनी तेज़ी से आपरेट कैसे कर लेता था ।
3- इसके बाद मुझे कुछ ऐसे टेलीग्राम याद हैं जो मैंने किए थे और जिनको याद कर के आज भी आँसू आते हैं । वो तारीख थी 26 जुलाई 1993 । स्थान जबलपुर का सीटीओ । मैं दिल कडा कर के लगातार सधे हुये हाथों से टेलेग्राम के फार्मों पर लिखे जा रहा था- 'मदर एक्स्पायर्ड" ...................
4- सितंबर 1994 में मेरी छोटी बहिन श्रीमति मनीषा श्रीवास्तव को प्रथम पुत्री रत्न की प्राप्ति का टेलेग्राम मिला था जो उसके पति चिरंजीव अभिलाष श्रीवास्तव ने किया था । वह बिटिया इस साल 12 वी पास हो कर कालेज के तयारी में है ।
5- अक्तूबर 1995 में चि॰ अभिलाष जी का ही दूसरा टेलीग्राम आया था जिसमें पुत्र रत्न की प्राप्ति की सूचना थी ।
और तो फिलहाल कोई और घटनाएँ याद नहीं आ रही है........... मोर्स कोड को सहेज कर रखा जाये....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें