एक अच्छी खबर ये है कि मेरे परिचय के दायरे में एक उत्साही युवा श्री राजेश कुमार सोनी शामिल हुए हैं। उन्होंने मेरे सारे लेखन को टाइप करने का बीड़ा उठाया है..... इसके लिए उन्होंने काग़ज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों को तक इकट्ठा किया है और उसे टाइप कर रहे हैं...... वे कृतिदेव में टाइप कर रहे हैं जिसे मैं यूनिकोड में परिवर्तित करके आप तक पहुंचाउंगा.......
तो लीजिये प्रस्तुत है ये गीत जो सन १९८९ की किसी धूल भरी गर्मी की ढलती शाम में मेरे भीतर कहीं करवटें लेता हुआ जागा था................
गीत प्रेम का...........
गीत प्रेम का यौवन का अब-
मुझसे नहीं लिखा जाता है।
पीडाओं का बोझा ढोते -
ढोते देह दोहरी हुई है ।
संत्रासों की तेज धूप में
खोती जाती प्यास मुई है ।
पीडाओं का बोझा ढोते -
ढोते देह दोहरी हुई है ।
संत्रासों की तेज धूप में
खोती जाती प्यास मुई है ।
दूर-दूर से छिप, कोई क्यों -
अपनी झलक दिखा जाता है ?
कभी उमड़ती अलस भाव से -
कभी क्षितिज में खो जाती हैं ।
कुछ सुधियां ऐसी भी हैं जो-
शांत भाव से सो जाती हैं ।
अपनी झलक दिखा जाता है ?
कभी उमड़ती अलस भाव से -
कभी क्षितिज में खो जाती हैं ।
कुछ सुधियां ऐसी भी हैं जो-
शांत भाव से सो जाती हैं ।
भूला-भटका मेघ बरस कर,
भाषा नई सिखा जाता है ।
भाषा नई सिखा जाता है ।
गीत प्रेम का यौवन का अब-
जवाब देंहटाएंमुझसे नहीं लिखा जाता है।
पीडाओं का बोझा ढोते -
ढोते देह दोहरी हुई है ।
संत्रासों की तेज धूप में
खोती जाती प्यास मुई है ।
दूर-दूर से छिप, कोई क्यों -
अपनी झलक दिखा जाता है ?
sometimes i feel.....there r few people who can exactally write their feelings.....i got new one....aur ye aap h sir.
आदरणीय आनंद कृष्ण जी,
जवाब देंहटाएंहिन्दी निकष पर आने का मौका मिला ई-कविता से मिला, बहुत अच्छा लगा।
भूला-भटका मेघ बरस कर,
भाषा नई सिखा जाता है ।
बहुत ही आशा भरी बात कही है... सही है कि हम अपने जीवन में कुछ नया ऐसी ही भूलों से सीखते हैं चाहे अपनी हों या किसी और की।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी