शनिवार, 27 सितंबर 2008

गीत : "वे आँखें"

एक बहुत पुराना गीत भेज रहा हूँ । गीत की पृष्ठभूमि ये थी कि मेरी सुगम संगीत परीक्षा का फाइनल वाइवा हो रहा था. मैं लेट हो गया था इसलिए भागा-भागा हांफता हुआ कॉलेज पहुंचा. वहाँ पहुँच कर कुछ प्रकृतिस्थ होने के बाद जब मैंने इधर-उधर देखना शुरू किया तो मुझे इस गीत की प्रेरणा दिखाई दी और वहीं ये गीत लिखा. बाद में मुझे समझ में आया कि इसमें कुछ गलतियां भी हैं पर मैंने उन्हें जान-बूझ कर ठीक नहीं किया. आज २० साल हो रहेहैं फ़िर भी "वे आँखें" आज भी मेरी स्मृतियों में सुरक्षित हैं.(अब तो हो सकता है उन पर मोटा चश्मा चढ़ गया हो- ) गीत के फॉण्ट का रंग वही है जिस रंग के उसने कपड़े पहन रखे थे. बहरहाल ये गीत पढिये और मेरे साथ अपने अतीत की यात्रा कर लीजिये.

गीत : वे आँखें ........

वे आँखें जितनी चंचल हैं उससे ज्यादा मेरा मन है
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है।

कभी लजातीं, सकुचातीं सी,
और कभी झुक-झुक जाती हैं .
मुझे देखती हैं वे ऐसे-
धड़कन सी रुक-रुक जाती है ।

कह देती हैं सब भेदों को, मौन नहीं हैं, वे चेतन हैं।
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है।

ह्रदय तंत्र को छेड़-छेड़ कर,
मधुर रागिनी वे गाती हैं।
मुझको मुझसे बना अपरिचित-
इंद्रजाल-सा फैलाती हैं।

आंखों ने रच डाला जैसे-एक अनोखा-सा मधुवन है।
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है।

कुछ क्षण मेरे पास बैठ कर-
आँखें दूर चली जाती हैं।
सच कहता हूँ- मुझसे मेरी-
साँसें दूर चली जाती हैं।

आंखों के जाने पर जाना- आंखों में सारा जीवन है।
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है।

इठलाती मदमाती आँखें-
कितना मुझको तरसाती हैं।
सच बोलो-! क्या इन आंखों को-
थोड़ी लाज नहीं आती है-?

वे आँखें क्या नहीं जानतीं-चार दिनों का यह यौवन है-?
वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है।

* * * * * *

1 टिप्पणी:

  1. दुष्यंत की याद आ गई:-

    'एक जंगल है तेरी आंखों में
    मैं जहां राह भूल जाता हूं।'

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