एक ग़ज़ल प्रस्तुत है-
इक मुसाफिर ने कारवां पाया।
कातिलों को भी मेहरबां पाया.
मेरे किरदार की शफाक़त ने-
हर कदम एक इम्तिहाँ पाया।
जुस्तजू में मिरी वो ताक़त है-
तुझको चाहा जहाँ-वहाँ पाया।
वो जो कहते हैं-मिरे साथ चलो
उनके क़दमों को बेनिशां पाया।
इक सितारा निशात का टूटा-
दर्द में हमने आसमां पाया.