बुधवार, 14 जनवरी 2009

एक ग़ज़ल


सूखते होंठों पे हमको तिश्नगी अच्छी लगी।

जिंदगी जीने की ऐसी बेबसी अच्छी लगी।

इस नुमाइश ने दिखाए हैं सभी रंजो-अलम-

इस नुमाइश की हमें ये तीरगी अच्छी लगी

हैं वसीले और भी, फितरत-बयानी के, लिए

पर हमें नज्मो-ग़ज़ल, ये शाइरी अच्छी लगी।

आलिमों ने इल्म की बातें बताईं हैं बहुत-

पर हकीकत में हमें दो-चार ही अच्छी लगी।

ख्वाहिशें सबकी कभी पूरी नहीं होतीं मगर-

जो तुम्हारे साथ गुज़री, जिंदगी अच्छी लगी।

आज इन हालत में भी हैं मेरे हमराह वो-

कुछ चुनिन्दा लोग- जिनको रोशनी अच्छी लगी।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आज इन हालत में भी हैं मेरे हमराह वो-कुछ चुनिन्दा लोग- जिनको रोशनी अच्छी लगी। बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आनंद भाई
    vijay

    जवाब देंहटाएं
  2. Bahut khoob........
    Sahitya me aapki TISHNAGI maa shaarda apne shad-jal se bujhaye...
    Shubhkamna.....
    Milate rahenge... Nayi rachnao ke sath..

    जवाब देंहटाएं
  3. Bahut khoob........
    Sahitya me aapki TISHNAGI maa shaarda apne shad-jal se bujhaye...
    Shubhkamna.....
    Milate rahenge... Nayi rachnao ke sath..

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