गीत: शब्द वही हैं ....
शब्द वही हैं, बदल गई है केवल अर्थों की भाषा ।
झूम-झूम नर्तन करते थे, नीलगिरि के उंचे पेड़-
अनगिन बिखरे तारों का शामें हंस स्वागत करती थीं ।
पीड़ा के बादल ने आंसू से लिख डाली परिभाषा ।
जिस दिन बहुत दूर से हमने झलक तुम्हारी पाई थी ।
नागपाश जैसी वेणी में बंध-हमने आकाश छुआ-
तन-मन में बिजली सी कौंधी-यौवन की अंगड़ाई थी।
श्वासों के संगम में हमको चेतनता के रंग मिले ।
उड़ते फिरते वनपाखी-से, रूप तुम्हारे संग मिले ।
मन के शिलालेख पर जाने किसने है यह दर्द तराशा ?
नव पल्लव का स्वागत करने मचल उठें सारी कलियां-
पंखुरियों पर प्रणय गीत हो ऐसा फूल कहीं खिल जाए।
पूनम की रातों में हम-तुम साथ रहें-बस पास रहें ।
और तुम्हारी पलकों में ही खिले खिले मधुमास रहें ।
इस निर्मम दुनिया में मैंने की जब सुख की अभिलाषा ।
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