शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

एक छोटी सी ग़ज़ल

एक छोटी सी ग़ज़ल

गर ज़मीं आशियाँ बनाने को-

तो फलक बिजलियाँ गिराने को।

किस तरह से कहें फ़साने को,

हर तरह उज्र है ज़माने को।

हमने चाहा है अश्क मिल जाए-

दर्द ये अपना कहीं छुपाने को।

उन गुलों को मसल दिया उसने-

जो मिले थे शहर सजाने को।

एक इंसान की ज़रूरत है-

प्यार का दीप फिर जलाने को।

जिसने बारिश की आहटें सुन लीं-

वो ही भागा है घर बचाने को।

कुछ तो उनमें वफ़ा रही होगी-

वो-जो आए हमें मनाने को।

* * * * * * * * *



3 टिप्‍पणियां:

  1. जिसने बारिश की आहटें सुन लीं-

    वो ही भागा है घर बचाने को।

    कुछ तो उनमें वफ़ा रही होगी-

    वो-जो आए हमें मनाने को।

    -बहुत खूब, आनन्द भाई. आनन्द आ गया.

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  2. हमने चाहा है अश्क मिल जाए-
    दर्द ये अपना कहीं छुपाने को।

    वाह आनन्द जी। आनन्दम्। आनन्दम्।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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